11 में से 7 ऑक्सीजन प्लांट 4 साल से पड़े हैं बंद, रोज खरीद रहे 1.38 लाख की ऑक्सीजन
बीकानेर। संभाग के सबसे बड़े पीबीएम हॉस्पिटल में कोरोनाकाल में लगाए गए ऑक्सीजन प्लांट बदहाली के शिकार हो रहे हैं। सात प्लांट पांच साल से बंद पड़े हैं। लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट भी नहीं चलाया। दो साल के लाइसेंस ही एक्सपायर, जबकि प्रदेश के कई हॉस्पिटल्स में काम आ रहे हैं।
पीबीएम हॉस्पिटल के लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट (एलएमओ) का लाइसेंस 2023 में ही एक्सपायर हो गया। प्लांट इंस्टॉल करने वाली कंपनी ने लाइसेंस रिन्यू कराने के लिए कहा, लेकिन उसे अनसुना कर दिया गया। भास्कर इंवेस्टिगेशन में सामने आया कि 20 हजार लीटर क्षमता वाले लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट से रोज औसत 2200 सिलेंडर भरने जितनी ऑक्सीजन सप्लाई हो सकती है।
पीबीएम हॉस्पिटल में रोज औसत 400 से 600 सिलेंडर की खपत है। यानी साढ़े तीन दिन तक पीबीएम को पूरे प्रेशर पर पूरी ऑक्सीजन मिलती है। अब यही ऑक्सीजन पीबीएम को ठेकेदार से खरीदनी पड़ रही है। इस पर रोज का औसत खर्च एक लाख 38 हजार आ रहा है, लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन से रोज 600 सिलेंडर जितनी ऑक्सीजन सप्लाई का खर्च बमुश्किल 39 हजार रुपए ही बैठता है। हैरानी की बात ये है कि ठेकेदार के यहां भी वैसा ही एमएलओ लगा है, जैसा पीबीएम हॉस्पिटल में है। उसकी भी क्षमता 20 हजार लीटर है।
दरअसल कोरोनाकाल के दौरान अक्टूबर 2020 में मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट एमसीएच बिल्डिंग के पास इंस्टॉल किया गया था। क्योंकि उस वक्त एमसीएच को कोविड हॉस्पिटल में तब्दील किया गया था। उस समय लिया गया यह फैसला अब पीबीएम के खजाने पर भारी पड़ रहा है। एक्सपर्ट का कहना है कि उस वक्त प्लांट को कैंसर हॉस्पिटल के आसपास लगाया जाता तो आज इससे कैंसर सहित मेडिसिन, गायनी, सर्जरी, टीबी आदि विभागों के वार्ड और आईसीयू में सीधी सप्लाई दी जा सकती थी। हैरानी की बात ये है कि प्रदेश के जयपुर में एसएमएस, चूरू, भीलवाड़ा सहित कई अस्पतालों में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट काम आ रहे हैं। चूरू अस्पताल में लगे प्लांट में एक बार लिक्विड भरने पर 40 दिन तक ऑक्सीजन सप्लाई हो रही है।
