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शादी में भरा 3 करोड़ का मायरा, 1.51 करोड़ कैश दिया, सोने-चांदी की ज्वेलरी के अलावा शहर में 2 प्लॉट भी दिए

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नागौर , 8 फ़रवरी। शादी में मायरा(भात) भरने की प्रथा को लेकर राजस्थान का नागौर जिला फिर से चर्चा में है। 3 भाइयों ने मिलकर अपने भांजे-भांजी की शादी में 1 करोड़ 51 लाख रुपए नकद, सोने-चांदी की ज्वेलरी और शहर में 2 प्लॉट समेत करीब 3 करोड़ रुपए का मायरा भरा। जब भाइयों के साथ परिवार के लोग थाली में कैश, ज्वेलरी लेकर पहुंचे तो ग्रामीणों की भीड़ जुट गई। मामला जायल तहसील के फरड़ोद गांव का है।

जिले के साडोकन निवासी हरनिवास खोजा, दयाल खोजा और हरचंद खोजा फरड़ोद निवासी अपनी बहन बीरज्या देवी पत्नी मदनलाल फरड़ोदा के घर पर मायरा भरने पहुंचे थे। तीनों भाइयों ने मिलकर अपने भांजे-भांजी की शादी में मायरे के तौर पर 1.51 करोड़ रुपए नगद, 35 तोला सोने के आभूषण, 5 किलो चांदी के आभूषण, बर्तन, कपड़े और घरेलू सामान के साथ नागौर शहर में 20- 20 लाख की कीमत के 2 प्लाट व फरड़ोद गांव के हर जाट परिवार को एक-एक चांदी की मूर्तियां दीं। सबकुछ मिलाकर करीब 3 करोड़ से ज्यादा का मायरा भरा गया, जिसकी जिलेभर में चर्चा रही।

3 बड़े बैग में लेकर पहुंचे नोटों के बंडल
मायरा की रस्म पूरी करने के लिए तीनों भाई 3 बड़े बैग में नोटों के बंडल लेकर पहुंचे। जबकि ज्वेलरी के लिए अलग से बैग लाए गए थे। रस्म के दौरान आवाज लगाकर पूरी रकम बताई गई, जिसके बाद ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई और तीनों भाइयों के परिवार की जमकर प्रशंसा की। मायरे में राजस्थान सरकार के पूर्व उप मुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी, जायल के पूर्व प्रधान रिधकरण लामरोड़, नागौर की पूर्व जिला प्रमुख सुनीता चौधरी सहित ग्रामीणों की मौजूदगी रही।

पूर्व सरपंच और पूर्व जिला प्रमुख का परिवार
मदनलाल फरड़ोदा के पिता राधाकिशन फरड़ोदा, फरड़ोद ग्राम पंचायत के सरपंच रहे चुके हैं। मदनलाल की बहन सुनिता चौधरी नागौर जिला प्रमुख रही है। बहनोई महेन्द्र चौधरी नावां से पूर्व विधायक व उप मुख्य सचेतक रहे चुके हैं। मायरे में क्षेत्र के कई जनप्रतिनिधियों ने शिरकत की। जायल के पूर्व प्रधान रिद्धकरण लोमरोड़ ने कहा कि साडोकन के खोजा परिवार ने फरड़ोद गांव में अपनी बहन के बड़ा मायरा भरकर जायल-खिंयाला के जाटों की ओर से भरे गए मायरे की याद दिला दी।

क्या होता है मायरा
बहन के बच्चों की शादी होने पर ननिहाल पक्ष की ओर से मायरा भरा जाता है। इसे सामान्य तौर पर भात भी कहते हैं। इस रस्म में ननिहाल पक्ष की ओर से बहन के बच्चों के लिए कपड़े, गहने, रुपए और अन्य सामान दिया जाता है। इसमें बहन के ससुराल पक्ष के लोगों के लिए भी कपड़े और जेवरात आदि होते हैं।

ये है मान्यता
मायरे की शुरुआत नरसी भगत के जीवन से हुई थी। नरसी का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में आज से 600 साल पूर्व हुमायूं के शासनकाल में हुआ था। नरसी जन्म से ही गूंगे-बहरे थे। वो अपनी दादी के पास रहते थे। उनका एक भाई-भाभी भी थे। भाभी का स्वभाव कड़क था। एक संत की कृपा से नरसी की आवाज वापस आ गई थी और उनका बहरापन भी ठीक हो गया था। नरसी के माता-पिता गांव की एक महामारी का शिकार हो गए थे। नरसी की शादी हुई, लेकिन छोटी उम्र में पत्नी भगवान को प्यारी हो गई। नरसी का दूसरा विवाह कराया गया था।

समय बीतने पर नरसी की लड़की नानीबाई का विवाह अंजार नगर में हुआ था। इधर नरसी की भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया था। नरसी श्रीकृष्ण के अटूट भक्त थे। वे उन्हीं की भक्ति में लग गए थे। भगवान शंकर की कृपा से उन्होंने ठाकुर जी के दर्शन किए थे। इसके बाद तो नरसी ने सांसारिक मोह त्याग दिया और संत बन गए थे। उधर नानीबाई ने पुत्री को जन्म दिया और पुत्री विवाह लायक हो गई थी। लड़की के विवाह पर ननिहाल की तरफ से भात भरने की रस्म के चलते नरसी को सूचित किया गया था। नरसी के पास देने को कुछ नहीं था। उसने भाई-बंधु से मदद की गुहार लगाई, मदद तो दूर कोई भी चलने तक को तैयार नहीं हुआ था। अंत में टूटी-फूटी बैलगाड़ी लेकर नरसी खुद ही लड़की के ससुराल के लिए निकल पड़े थे। बताया जाता है कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण खुद भात भरने पहुंचे थे।

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