बीकानेर
राजस्थान की जैव विविधता और कृषि संपदा को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया है। स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय ने खेजड़ी के पेड़ से मिलने वाली सांगरी को भौगोलिक संकेत (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन- जीआई) टैग दिलाने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया है। चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री कार्यालय में करीब 700 पृष्ठों का विस्तृत दस्तावेज़ भेजा गया है। कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि यह आवेदन स्वीकार कर लिया गया है और इससे सांगरी को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान मिलेगी।
खेजड़ी और सांगरी: राजस्थान की धरोहर
खेजड़ी राजस्थान का पवित्र और ऐतिहासिक पेड़ है, जिसे राज्य का आधिकारिक वृक्ष भी घोषित किया गया है। इसे पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता और पारंपरिक उपयोगों के लिए जाना जाता है। खेजड़ी के पेड़ से मिलने वाली सांगरी को मरु प्रदेश का अनमोल तोहफा कहा जाता है। यह फल विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है और इसका उपयोग पारंपरिक व्यंजनों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। सांगरी को राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा माना जाता है, जो इस राज्य की शुष्क जलवायु में पोषक आहार की जरूरत को पूरा करता है।
जीआई टैग प्रक्रिया और एसकेआरएयू की भूमिका
कृषि विश्वविद्यालय की टीम ने जीआई टैग के लिए करीब 700 पन्नों का दस्तावेज तैयार किया है, जिसमें सांगरी की विशिष्टता, खेजड़ी के महत्व, इसके पारंपरिक उपयोग और आर्थिक फायदे का उल्लेख किया गया है। आवेदन चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री कार्यालय में प्रस्तुत किया गया है। डॉ. यादव ने बताया कि जीआई टैग किसी व्यक्ति को नहीं, बल्कि समुदाय को मिलता है।
जीआई टैग क्या है और क्यों है यह महत्वपूर्ण?
जीआई टैग प्राप्त होने से उत्पाद कानूनी संरक्षण के दायरे में आ जाता है। बायोटेक्नोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. सुजीत कुमार यादव ने बताया कि भारत में अब तक 600 से अधिक उत्पादों को जीआई टैग मिला है, जिनमें से लगभग 200 कृषि उत्पाद हैं। राजस्थान के संदर्भ में बात करें तो सोजत की मेहंदी और बीकानेरी भुजिया जैसे कुछ उत्पादों को ही यह मान्यता प्राप्त है। अब खेजड़ी की सांगरी को यह टैग मिलने पर न केवल यह उत्पाद कानूनी रूप से संरक्षित होगा।
