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राजस्थान पुलिस की ऐप पर एफ आई आर डाउनलोड में मनमानी का विरोध,शहर के युवाओं ने भेजा सीएम को ज्ञापन

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बीकानेर,राजस्थान पुलिस की वेबसाइट और मोबाइल एप्लीकेशन राजकोप सिटीजन पर 24 घंटे में एक आवेदक को केवल एक एफआईआर डाउनलोड करने की अनुमति देने के आदेश को तालिबानी आदेश बताते हुए बीकानेर शहर के सामाजिक कार्यकर्ता मेघराज सोनी मौसूण और श्री मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज बीकानेर के विधि सलाहकार एडवोकेट अनिल सोनी ने मुख्यमंत्री और राजस्थान पुलिस महानिदेशक के साथ ही मानवाधिकार आयोग को ज्ञापन देकर राजस्थान पुलिस द्वारा राजस्थान पुलिस की वेबसाईट राजकोप सिटीजन ऐप पर 24 घंटे मे एक ही यूजर द्वारा एक ही एफ आई आर डाउनलोड करने के प्रतिबंध को हटाया जाकर एफ आई आर दर्ज होने के एक घंटे के भीतर राजकोप सिटीजन ऐप पर अपलोड करने की मांग की है। जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक बीकानेर को ज्ञापन देकर मेघराज सोनी ने बताया कि पिडित एवं आरोपी पक्ष को कानूनी परामर्श एवं उनके विधिक अधिकारो को संवैधानिक प्रक्रिया के तहत लागू करवाने एवं आपराधिक मामलो मे न्याय दिलाने हेतु अपराध की प्रथम कडी प्रथम सूचना रिपोर्ट होती है और उक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट कई बार राजकीय अवकाश के दिन दर्ज होने के कारण तुरन्त पीडित अथवा आरोपी पक्ष को उपलब्ध नही हो पाती है। जिसके लिये न्यायालय खुलने पर एफ आई आर की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने मे अनावश्यक विलम्ब होता है। जिसके कारण कई बार पुलिस द्वारा मनमाफिक कार्यवाही करते हुए भारतीय नागरिको को प्रथम सूचना रिपोर्ट के भय के आधार पर अवैध हिरासत में रख लेती है और मांग करने के बावजूद एफ आई आर की जानकारी उपलब्ध नही करवाई जाती है। एडवोकेट अनिल सोनी ने बताया कि इन्ही समस्याओं को देखते हुए यूथ बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2016) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इडिया ने सभी राज्यो को 15 नवम्बर 2016 से सभी एफआईआर (संवेदनशील मामलो के अलावा) वेबसाइट पर अपलोड करने के आदेश दिये थे। इस आदेश की पालना में राजस्थान सरकार ने राजस्थान पुलिस की वेबसाइट पर सभी एफआईआर अपलोड की है। लेकिन पिछले कुछ महिनो से इस वेबसाईट और मोबाइल एप्लीकेशन पर 24 घंटे की समयावधि में एक उपयोगकर्ता (यूजर आईडी) को महज एक एफआईआर डाउनलोड करने की अनुमति दी जा रही है। ऐसे में नागरिकों के लिये एफआईआर सहज सुलभ रूप से उपलब्ध नहीं हो रही है। एफआईआर नम्बर की पूर्व जानकारी के बिना चाही गई एफआईआर डाउनलोड करना महज दुर्लभ संयोग पर निर्भर करता है।सामान्यतः कई एफआईआर डाउनलोड करने पर चाही गई एफआईआर आवेदक को मिलती है। नागरिकों को एफआईआर डाउनलोड से रोकना उनके संवैधानिक अधिकारो का दुरूपयोग है।एडवोकेट अनिल सोनी ने कहा कि पुलिस द्वारा अपने अवैध उदेश्यो की पूर्ति करने व आपराधिक घटनाओं पर पर्दा डालने के लिये एफ आई आर को एफआईआर दर्ज होने के 12-24 घंटे बीत जाने के पश्चात् वेबसाईट पर अपलोड करती है। इस कारण भी कई बार नागरिको के संवैधानिक अधिकारो का अतिक्रमण होता है। जबकि पुलिस को चाहिए की एफ आई आर दर्ज होने के तुरन्त पश्चात् एफ आई आर को वेबसाईट पर अपलोड करनी चाहिए ताकि पीडित व्यक्ति अथवा आरोपी व्यक्ति को उसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज होते ही एक घंटे के भीतर संबंधित व्यक्ति को एफ आई आर की प्रति प्राप्त हो सके और वह अपने न्यायिक अधिकारो की सुरक्षा सुनिश्चित कर सके। इस प्रकार राजस्थान पुलिस एक आवेदक द्वारा 24 घंटे में एक ही एफआईआर डाउनलोड करने का तालिबानी प्रतिबंध लगाकर उच्चतम न्यायालय के आदेशो की मूल भावना और मन्शा के विपरित कार्य कर रही है। जो कि राजस्थान पुलिस का उक्त कृत्य भारत के अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता), अनुच्छेद 19 (1) (ए) वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) का भी उल्लंघन है।

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