राजस्थान में चांदीपुरा वायरस की एंट्री हो गई है।
उदयपुर के दो बच्चों में वायरस के लक्षण मिले थे। दोनों का इलाज गुजरात में चल रहा था। तीन साल के एक बच्चे की 27 जून को मौत हो गई, जबकि दूसरे का इलाज जारी है। वह खतरे से बाहर है। उधर, उल्टी-दस्त से पीड़ित बच्चों की निगरानी शुरू कर दी गई है। स्वास्थ्य विभाग घर-घर सर्वे करा रहा है।

उदयपुर के डिप्टी सीएमएचओ अंकित जैन ने बताया- राज्य सरकार से रविवार को सूचना मिली थी कि उदयपुर जिले के खेरवाड़ा और नयागांव के दो बच्चों में चांदीपुरा वायरस के लक्षण मिले हैं। दोनों को गुजरात के हिम्मतनगर स्थित सिविल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। बच्चों के ब्लड और सीरम के सैंपल पुणे भिजवाए गए। इसकी रिपोर्ट आनी बाकी है।
इलाज के दौरान एक की मौत
डिप्टी सीएमएचओ अंकित जैन ने बताया- खेरवाड़ा के बलीचा गांव में बच्चा 26 जून को अपने घर पर था। अचानक उसे दौरे आने लगे। पहले उसे भीलूड़ा (उदयपुर) सीएचसी ले गए। वहां से हिम्मतनगर (गुजरात) सिविल हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया। दूसरे दिन उसकी मौत हो गई।

दूसरा केस खेरवाड़ा के ही बावलवाड़ा गांव की बच्ची (5) का है। बच्ची को 5 जुलाई को उल्टी-दस्त, बुखार की शिकायत के बाद पहले ईडर (गुजरात) हॉस्पिटल ले जाया गया था। बाद में उसे हिम्मतनगर (गुजरात) रेफर किया गया। उसका आईसीयू में इलाज चल रहा था। दो दिन पहले उसे वार्ड में शिफ्ट किया गया। बच्ची अब स्वस्थ है।
दोनों इलाकों में शुरू किया सर्वे
सीएमएचओ डॉ. शंकर बामनिया ने बताया- दोनों इलाकों खेरवाड़ा और नयागांव में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने सोमवार को सर्वे कराया है। दोनों जगह 35 घरों के सर्वे में अभी ऐसा कोई मरीज नहीं मिला है, जिसमें चांदीपुरा संक्रमण के लक्षण हों। बीमार बच्चे के परिजनों की ट्रैवल हिस्ट्री भी नहीं है। फिलहाल सर्वे जारी है और स्पेशल ड्यूटी लगाकर मेडिकल टीमों को गुजरात से सटे कोटड़ा, खेरवाड़ा और नयागांव इलाके में तैनात किया गया है। इलाज के दौरान हुई बच्चे की मौत के बाद सावधानी बरत रहे हैं। बच्चे में चांदीपुरा वायरस के लक्षण थे। पुणे से रिपोर्ट आनी बाकी है।

मौके पर एक डिप्टी CMHO, एक फिजिशियन, पीडियाट्रिशियन और एपीडर्मोलॉजिस्ट को तैनात किया है। ये वायरस आसपास के बच्चों में न फैले, इसको लेकर एंटी लार्वा एक्टिविटी जारी है। बीमार बच्चों के आसपास घर-घर सर्वे कराया जा रहा है। सभी सीएचओ और एएनएम को इस संबंध में निर्देश जारी करते हुए बुखार और उल्टी-दस्त से पीड़ित बच्चों पर विशेष ध्यान देने को कहा है।
वर्ष 1966 में महाराष्ट्र के चांदीपुरा में हुई थी इस वायरस की पहचान
वर्ष 1966 में महाराष्ट्र के नागपुर स्थित चांदीपुरा गांव में चांदीपुरा वायरस की पहचान हुई थी। इसके बाद इस वायरस को वर्ष 2004-06 और 2019 में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में रिपोर्ट किया गया था। चांदीपुरा वायरस एक RNA वायरस है। यह वायरस सबसे अधिक मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से ही फैलता है।

मच्छर में एडीज ही इसके पीछे ज्यादातर जिम्मेदार है। 15 साल से कम उम्र के बच्चे सबसे ज्यादा इसका शिकार होते हैं। उन्हीं में मृत्यु दर भी सबसे ज्यादा रहती है। चांदीपुरा के इलाज के लिए आज तक कोई एंटी वायरल दवा नहीं बनी है। इस मैकेनिज्म में यदि दवा या वैक्सीन ईजाद की जाए तो चांदीपुरा वायरस फैलाने वाले रोग सोर्सेज पर कंट्रोल रखा जा सकता है।
मस्तिष्क में सूजन आ जाती है, मौत तक हो जाती है
चांदीपुरा वायरस के संक्रमण के दौरान शरीर के माइक्रोगियल सेल्स में माइक्रो RNA-21 की संख्या बढ़ने लगती है। इससे कोशिकाओं में फोस्फेटेस और टेनसिन होमलोग (PTEN) पदार्थ का सिक्रिशन कम हो जाता है। इससे इंसानों की माइक्रोग्लियल कोशिकाओं में न्यूक्लियर फैक्टर कापा लाइट-चैन-एनहांसर ऑफ एक्टिवेटिड बी सेल्स (NF कप्पा BP65) या साइटोकाइन्स की सक्रियता बढ़ जाती है। इससे मस्तिष्क में सूजन हो जाती है।
इससे तेज बुखार, उल्टी, ऐंठन और कई मानसिक बीमारियां आ जाती हैं। इसके कारण मरीजों में इंसेफेलाइटिस के लक्षण भी दिखने लगते हैं और मरीज कोमा में चला जाता है। कई बार तो मौत तक हो जाती है। इन लक्षणों को एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) की कैटेगरी में रखा गया है।
