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भाजपा में मंडल व जिलाध्यक्ष बनने में करना पड़ सकता और इंतजार ये वज़ह बन रही बाधा

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बीकानेर। भाजपा के मंडल से लेकर जिलाध्यक्ष पद को लेकर चल रही खींचतान के बीच नियुक्तियों को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। लेकिन शिकायतों के चलते भाजपा में अन्दुरूनी कलह भी उभर कर सामने आने लगी है। विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मंडल अध्यक्षों पर लगी अंतरिम रोक के पीछे भी बड़ी वजह यही सामने आई है। तो जिलाध्यक्ष पद की नियुक्ति में देरी भी कारण भी यहीं बताया जा रहा है। हालांकि सोशल मीडिया पर समर्थक अपने अपने चेहतों को पद बांटने में लगे है। किन्तु भाजपा में संगठनात्मक नियुक्तियों में कही न कही पार्टी का संविधान भी आड़े आ रहा है। जिसके आधार पर शिकायतकर्ता के दावे भी मजबूत हो गये है। बताया जा रहा है कि जिन पांच मंडलों की नियुक्ति पर रोक लगाई गई है। इनमें से चार मंडल पदाधिकारी,सक्रिय सदस्य या पार्टी में संगठन स्तर पर पदाधिकारी नहीं रहे है। जबकि एक शहर में संगठन स्तर पर पदाधिकारी नहीं रहे।

ये है पार्टी नियुक्ति को लेकर कानून
पता चला है कि भाजपा में नियुक्ति को लेकर उम्र के साथ साथ कुछ नियम कायदे ओर तय किये है। इसमें मंडल अध्यक्षों के लिये जहां 45 वर्ष तथा जिलाध्यक्ष के लिये 60 वर्ष तक की उम्र तय की है। वहीं इनकी नियुक्ति में अध्यक्षों को संगठन स्तर पर पदाधिकारी होना,पार्टी का सक्रिय सदस्य होना भी जरूरी है। तो ऐसे कार्यकर्ता को भी अध्यक्ष का दायित्व नहीं दिया जा सकता जो कभी भी पार्टी से निष्काषित रहा हो। रानीबाजार,नयाशहर,पुराना शहर मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति पर रोक की वजह पार्टी में संगठन स्तर पर पदाधिकारी नहीं होना बताया जा रहा है। जबकि जस्सूसर गेट मंडल अध्यक्ष पार्टी के तय उम्र से ज्यादा होना बताया गया है। तो जूनागढ़ मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति पर रोक का कारण देहात का होना सामने आ रहा है। किन्तु इसकी बड़ी वजह पार्टी नेताओं की खींचतान है।

आपसी खुन्दस भी बड़ा कारण
अंदरखाने की बात तो यह है कि जिला स्तर पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में आपसी खुन्दस भी बड़ा कारण है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोर पकडऩे लगी है कि कुछ दिन पहले पूर्व काबिना मंत्री देवीसिंह भाटी द्वारा संगठन चुनाव प्रभारी दशरथ सिंह की कार्यप्रणाली पर उठाएं गये सवाल ओर केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल से उनकी अदावत भी एक वजह है। जिसके कारण मंडल अध्यक्ष व शहर-देहात अध्यक्षों की नियुक्ति में देरी हो रही है। इतना ही नहीं कुछ राजनीतिक जानकार यह भी कहते सुने जा सकते है कि स्थानीय विधायक अपने चेहतों पर संगठन में अधिकाधिक जगह दिलाने के कारण भी यह खींचतान ज्यादा बढ़ गई है।

मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद ही बन सकता है जिलाध्यक्ष
सूत्र बताते है कि पार्टी जिलाध्यक्षों की घोषणा मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद ही संभव है। हालांकि इसमें भी कई दावेदार सामने आएं है। परन्तु कई दावेदार पार्टी संविधान के चलते निपटते नजर आ रहे है। ऐसे में अगर पार्टी महिला को जिलाध्यक्ष बनाने पर विचार कर रही है तो कोई चौकाने वाला नाम भी सामने आ सकता है।

बीकानेर। भाजपा के मंडल से लेकर जिलाध्यक्ष पद को लेकर चल रही खींचतान के बीच नियुक्तियों को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। लेकिन शिकायतों के चलते भाजपा में अन्दुरूनी कलह भी उभर कर सामने आने लगी है। विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मंडल अध्यक्षों पर लगी अंतरिम रोक के पीछे भी बड़ी वजह यही सामने आई है। तो जिलाध्यक्ष पद की नियुक्ति में देरी भी कारण भी यहीं बताया जा रहा है। हालांकि सोशल मीडिया पर समर्थक अपने अपने चेहतों को पद बांटने में लगे है। किन्तु भाजपा में संगठनात्मक नियुक्तियों में कही न कही पार्टी का संविधान भी आड़े आ रहा है। जिसके आधार पर शिकायतकर्ता के दावे भी मजबूत हो गये है। बताया जा रहा है कि जिन पांच मंडलों की नियुक्ति पर रोक लगाई गई है। इनमें से चार मंडल पदाधिकारी,सक्रिय सदस्य या पार्टी में संगठन स्तर पर पदाधिकारी नहीं रहे है। जबकि एक शहर में संगठन स्तर पर पदाधिकारी नहीं रहे।

ये है पार्टी नियुक्ति को लेकर कानून
पता चला है कि भाजपा में नियुक्ति को लेकर उम्र के साथ साथ कुछ नियम कायदे ओर तय किये है। इसमें मंडल अध्यक्षों के लिये जहां 45 वर्ष तथा जिलाध्यक्ष के लिये 60 वर्ष तक की उम्र तय की है। वहीं इनकी नियुक्ति में अध्यक्षों को संगठन स्तर पर पदाधिकारी होना,पार्टी का सक्रिय सदस्य होना भी जरूरी है। तो ऐसे कार्यकर्ता को भी अध्यक्ष का दायित्व नहीं दिया जा सकता जो कभी भी पार्टी से निष्काषित रहा हो। रानीबाजार,नयाशहर,पुराना शहर मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति पर रोक की वजह पार्टी में संगठन स्तर पर पदाधिकारी नहीं होना बताया जा रहा है। जबकि जस्सूसर गेट मंडल अध्यक्ष पार्टी के तय उम्र से ज्यादा होना बताया गया है। तो जूनागढ़ मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति पर रोक का कारण देहात का होना सामने आ रहा है। किन्तु इसकी बड़ी वजह पार्टी नेताओं की खींचतान है।

आपसी खुन्दस भी बड़ा कारण
अंदरखाने की बात तो यह है कि जिला स्तर पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में आपसी खुन्दस भी बड़ा कारण है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोर पकडऩे लगी है कि कुछ दिन पहले पूर्व काबिना मंत्री देवीसिंह भाटी द्वारा संगठन चुनाव प्रभारी दशरथ सिंह की कार्यप्रणाली पर उठाएं गये सवाल ओर केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल से उनकी अदावत भी एक वजह है। जिसके कारण मंडल अध्यक्ष व शहर-देहात अध्यक्षों की नियुक्ति में देरी हो रही है। इतना ही नहीं कुछ राजनीतिक जानकार यह भी कहते सुने जा सकते है कि स्थानीय विधायक अपने चेहतों पर संगठन में अधिकाधिक जगह दिलाने के कारण भी यह खींचतान ज्यादा बढ़ गई है।

मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद ही बन सकता है जिलाध्यक्ष
सूत्र बताते है कि पार्टी जिलाध्यक्षों की घोषणा मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद ही संभव है। हालांकि इसमें भी कई दावेदार सामने आएं है। परन्तु कई दावेदार पार्टी संविधान के चलते निपटते नजर आ रहे है। ऐसे में अगर पार्टी महिला को जिलाध्यक्ष बनाने पर विचार कर रही है तो कोई चौकाने वाला नाम भी सामने आ सकता है।

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